नमस्कारम, भारतीय संस्कृति का हर पहलू एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है – चाहे आप बैठे हों, खड़े हों या कुछ और कर रहे हों। हमारी संस्कृति में खाना खाने के लिए भी चाहे आप बैठे हों, खड़े हों या कुछ और कर रहे बताए जाते हैं।
सद्गुरु के दृष्टिकोण से, तामसिक, राजसिक और सात्विक भोजन का वर्गीकरण न केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि हमारे मानसिक और आध्यात्मिक विकास पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इस वीडियो में जो विषय उठाया गया है, वह हमारी भोजन की आदतों और उसके प्रभावों को समझने में मदद करता है। आइए इसे गहराई से समझते हैं:
1. तामसिक भोजन
- परिभाषा: तामसिक भोजन वह है जो शरीर और मन में जड़ता, आलस और निष्क्रियता को बढ़ावा देता है। इसमें बासी, खराब या अधिक मसालेदार और तेलीय भोजन शामिल है।
- मांसाहार का प्रभाव: सद्गुरु के अनुसार, मांसाहार में तामसिक प्रवृत्ति होती है क्योंकि इसे पचाने में शरीर को अधिक मेहनत करनी पड़ती है। यह जड़ता (inertia) और आलस को बढ़ावा देता है। साथ ही, मांस खाने से शारीरिक ऊर्जा का बड़ा हिस्सा इसे पचाने में खर्च हो जाता है, जिससे मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- नकारात्मक प्रभाव:
- आलस्य और थकावट का बढ़ना।
- शरीर में विषाक्तता (toxicity) बढ़ना।
- ध्यान और आध्यात्मिक प्रगति में बाधा।
2. राजसिक भोजन
- परिभाषा: राजसिक भोजन वह है जो ऊर्जा और गतिविधि को बढ़ावा देता है लेकिन साथ ही मानसिक उत्तेजना और बेचैनी पैदा कर सकता है। इसमें मसालेदार, खट्टा, मीठा और अत्यधिक तला हुआ भोजन शामिल होता है।
- उत्साह बनाम अस्थिरता: यह भोजन व्यक्ति को सक्रिय तो रखता है लेकिन अधिक मात्रा में यह मानसिक स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
- संभव प्रभाव:
- कार्यक्षमता बढ़ सकती है लेकिन ध्यान में बाधा आ सकती है।
- गुस्सा, चिड़चिड़ापन और मानसिक असंतुलन।
3. सात्विक भोजन
- परिभाषा: सात्विक भोजन वह है जो शुद्ध, सरल और पोषणकारी होता है। यह भोजन शरीर और मन को संतुलित रखता है। इसमें ताजे फल, सब्जियां, दाल, अनाज, नट्स और प्राकृतिक खाद्य पदार्थ शामिल हैं।
- आध्यात्मिक महत्व: सद्गुरु के अनुसार, सात्विक भोजन व्यक्ति को ऊर्जा देता है, मन को शांत करता है और ध्यान में सहायक होता है। यह शरीर को हल्का महसूस कराता है और लंबी उम्र के लिए फायदेमंद होता है।
- सकारात्मक प्रभाव:
- मानसिक स्पष्टता और स्थिरता।
- ऊर्जावान और प्रसन्नचित्त महसूस करना।
- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ना।
सद्गुरु के अन्य महत्वपूर्ण विचार और जानकारी के

भोजन और चेतना का संबंध
सद्गुरु यह भी बताते हैं कि भोजन केवल पोषण का स्रोत नहीं है, यह हमारी चेतना पर भी प्रभाव डालता है। जो भोजन हम खाते हैं, उसका ऊर्जा और जीवन पर गहरा असर पड़ता है। उदाहरण के लिए:
- मांसाहार: इसमें जानवर की मृत्यु का अनुभव और तनाव अंतर्निहित होता है, जिसे शरीर ग्रहण करता है।
- शाकाहार: यह प्रकृति से जुड़ा है और हमारे सिस्टम को साफ और हल्का रखने में मदद करता है।
सद्गुरु की सलाह
- सात्विक भोजन को अपनाएं:
- ताजे फल और सब्जियां।
- प्राकृतिक और कम प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ।
- ज्यादा मसाले और तले हुए खाद्य पदार्थ से बचें।
- भोजन का समय:
- रात का खाना हल्का और सोने से पहले 3-4 घंटे पहले होना चाहिए।
- दिन के दौरान अधिक पोषणकारी और ऊर्जा देने वाला भोजन करें।
- ध्यान और भोजन का संबंध:
- जब शरीर हल्का और शुद्ध महसूस करता है, तो ध्यान लगाना आसान होता है।
- भोजन को भावपूर्ण और ध्यानपूर्वक ग्रहण करें।
सद्गुरु का मानना है कि भोजन केवल पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि यह शरीर और मन को स्वस्थ और संतुलित रखने का साधन है। सात्विक भोजन न केवल हमारी शारीरिक क्षमता को बढ़ाता है बल्कि हमें मानसिक स्पष्टता और आध्यात्मिक प्रगति की ओर ले जाता है।
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