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Great spiritual sant संत ज्ञानेश्वर और नामदेव की एक चोर से हुई मुलाकात।

Great spiritual sant संत ज्ञानेश्वर और नामदेव की एक चोर से हुई मुलाकात।

हरिपाल और पांडुरंग की अद्भुत कथा

महाराष्ट्र के दो महान संत, ज्ञानेश्वर और नामदेव जी, पूरे भारत में अपनी भक्ति और चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध थे। वे हमेशा साथ-साथ तीर्थ यात्राएं करते थे। एक बार, उनकी यात्रा के दौरान, उनका सामना एक दिलचस्प व्यक्ति, हरिपाल, से हुआ, जिसने उनके जीवन में एक अद्भुत अध्याय जोड़ दिया।

हरिपाल का जीवन

हरिपाल एक चोर था, लेकिन उसका दिल भक्तिभाव और दानशीलता से भरा हुआ था। वह केवल उतना ही चोरी करता था, जितना उसकी जरूरतें पूरी करने के लिए आवश्यक होता। हालांकि, चोरी का यह रास्ता उसने अपने परिवार को पालने और समाज की सेवा के लिए चुना था।

संतों का आगमन

हरिपाल ने सुना कि ज्ञानेश्वर और नामदेव उसके गांव में रुकने वाले हैं। यह सुनकर वह बहुत खुश हुआ और सोचा कि क्यों न इन महान संतों को अपने घर ठहराकर उनकी सेवा करने का अवसर प्राप्त किया जाए। संत उसकी विनम्रता से प्रसन्न हुए और उसके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया।

हरिपाल ने न केवल संतों की सेवा का बीड़ा उठाया, बल्कि पूरे गांव के लिए भजन-कीर्तन और भोजन का भी आयोजन करने का निश्चय किया। लेकिन एक समस्या थी – उसके पास इतने बड़े आयोजन के लिए धन नहीं था।

भगवान पांडुरंग की परीक्षा

हरिपाल ने तय किया कि वह इस धन की व्यवस्था चोरी से करेगा। उसने भगवान से प्रार्थना की, “हे पांडुरंग, मेरी इज्जत बचा लो। इस बार मुझे एक बड़ा मौका दे दो ताकि मैं संतों और पूरे गांव की सेवा कर सकूं।”

मैंने पूरे गाँव को भोजन के लिए आमंत्रित किया है। इस बार कोई बड़ी पार्टी हाथ लग जाए, बस।”

तो क्या पंढरपुर के पांडुरंग यह सब सुन ही रहे थे। उन्होंने रुख्मिणी माता से कहा, “देवी, बुलावा आया है और वह भी बहुत urgent है। जाना ही पड़ेगा।”
माता ने कहा, “ज़रूर जाना पड़ेगा।”

उस रात, वह जंगल के रास्ते पर बैठकर किसी अमीर यात्री की प्रतीक्षा करने लगा। इधर, भगवान पांडुरंग और माता रुक्मिणी ने उसकी प्रार्थना सुन ली। पांडुरंग ने माता से कहा, “चलो, अपने भक्त की मदद करते हैं।”

दोनों साधारण ग्रामीण वेशभूषा में,  कीमती आभूषणों के साथ, (जो सहजता से बाजार में बेच सके) हरिपाल के पास पहुंचे।

हरिपाल की चोरी

हरिपाल ने झाड़ियों से छलांग लगाकर उनका रास्ता रोका और चाकू दिखाकर उनके गहने छीन लिए। माता रुक्मिणी ने पांडुरंग से कहा, “मंगलसूत्र रहने दो,” लेकिन हरिपाल ने कहा, “सबकुछ निकालो। मुझे एक बड़ा धार्मिक आयोजन करना है।” 2 बड़े संत जो आये है ।

जो नहीं बोलना था वो बोल गया हरीपाल।

अरे ये क्यों बोल दिया मैंने। वो मन ही मन में बड़बड़ाया। फिर से उनको धमकी देने लगा कि जो सुना हैं वो किसीको भी नहीं बताना नहीं तो छोडूंगा नहीं। फिर पांडुरंग बोले बुरा मत मानना पर एक बात बोलू।

पांडुरंग मुस्कुराए और बोले, “तुम सचमुच एक अनोखे चोर हो। तुम्हारी चोरी दूसरों के लिए सेवा का माध्यम है।”

हरीपाल “हा हा ज्यादा मत बोलो जनता हूँ। ”

यह video देख सकते हो। 👈👈👈

https://youtu.be/YdMOXcy0zsg

संतों के दर्शन की इच्छा

पांडुरंग अरे एक बिनती थी, हमें भी इतने बड़े संत के दर्शन की लालसा हो रही हैं हमें भी तुम्हारे गाँव ले चलो ना , हमारे भी दर्शन हो जायेंगे।

हरीपाल आश्छर्यचकित होकर “अरे तुम तो बहोत आगे की बोल रहे हो। वहाँ आकर क्या मेरी इज्जत को गाँव वालों के सामने पानी में मिलाने का इरादा तो नही।

रुखमिनि नही रे बेटा। हम तो उनके दर्शन दूर से ही करेंगे किसीको कुछ नहीं बोलेंगे। बस हमे वहाँ तक लेके चलो। हमारी अब जिंदगीही कितनी बची हैं. जाते जाते उन संतोंके तुम्हारी बजह से दर्शन तो हो जायेंगे।

हरीपाल अछया अच्छ्या ठीक है ज्यादा मत मन बहलाओ। हा लेलो उनके दर्शन , पर याद रहे तुम मेरे बाद पीछे पीछे आना और दूर से ही उनके दर्शन ले लेना और हाँ किसी को अगर कुछ बोला तो मेरे से बुरा कोई नहीं होगा याद रहें।

सच्चाई का खुलासा

 

ज्ञानदेव और नामदेव दोनों को अच्छे से पत्नी के साथ अपने हाथों से स्नान करवाता है। लेकिन अचानक से सामने वो दोनों आते हैं। ये तो एकदम गड़बड़ी में पड़ जाता हैं। और दूर से उनको वहाँसे चले जाने को कहता है। पर उसको क्या पता यही तो विश्व के तरानहार है।
ज्ञानेश्वर जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “हरीपाल, तुम्हारा भाग्य जाग गया। तुम्हारे यहां स्वयं पांडुरंग और माता रुक्मिणी दर्शन देने आए हैं।”

हरिपाल की आंखें आश्चर्य और आंसुओं से भर गईं। वह तुरंत भगवान के चरणों में गिर पड़ा और अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी। पांडुरंग बोले, “तुम्हारा इरादा सेवा का था, इसलिए हम तुम्हारे बुलावे पर आए।”

उस दिन से हरिपाल का जीवन बदल गया। उसने चोरी का रास्ता छोड़कर अपनी भक्ति और सेवा में संतोष ढूंढा।

कथा का संदेश

यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और सेवा भाव में भगवान स्वयं प्रकट होते हैं। हृदय की पवित्रता और भक्ति की शक्ति, किसी भी भूल को सुधार सकती है और जीवन को नया मार्ग दिखा सकती है।

उजलले भाग्य आता अवघि चिंता वारली। 

जय पांडुरंग! 🙏


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