MAHA KUMBH MELA 2025 कुंभ मेले और ग्रह-नक्षत्रों का संबंध जानकर वैज्ञानिक भी सोच में पड़ गए! अब उन्हें पता चला कि बृहस्पति सूर्य के चारों ओर 12 वर्षों में एक चक्र पूरा करता है और पृथ्वी की रक्षा करता है। बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण अधिकांश क्षुद्रग्रहों , (छोटा तारा )और अंतरिक्ष चट्टानों को पृथ्वी से दूर रखता है। इसके बिना पृथ्वी संभवत: मनुष्यों के रहने योग्य नहीं रहेगी। अगर आपकी जिज्ञासा है तो आगे पढ़ें।
कुंभ मेले का आयोजन खगोलीय घटनाओं और ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति के आधार पर किया जाता है। यह पूरी तरह से हिंदू धर्म की ज्योतिषीय मान्यताओं और शास्त्रों पर आधारित है। कुंभ मेले की तिथियां और स्थान (प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) इन खगोलीय घटनाओं से तय होते हैं। हजारों वर्षों से हम बृहस्पति चक्र के आधार पर हर 12 साल में प्रयाग में महाकुंभ मनाते हैं। हम इसे गुरु के रूप में पूजते हैं।
ग्रह-नक्षत्रों और कुंभ मेले का शास्त्रीय महत्व
1. ज्योतिषीय आधार
- कुंभ मेले की तिथियां और स्थान सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति (गुरु ग्रह) की विशेष स्थिति पर निर्भर करती हैं।
- शास्त्रों के अनुसार, जब बृहस्पति कुंभ राशि (Aquarius) में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि (Aries) या मकर राशि (Capricorn) में होता है, तो कुंभ मेले का आयोजन होता है।
- बृहस्पति और सूर्य की यह स्थिति अमृत स्नान के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती है।
2. चार स्थानों का संबंध
चार पवित्र स्थानों (प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कुंभ मेले का आयोजन अलग-अलग ग्रहों की स्थिति के आधार पर किया जाता है:
- प्रयागराज: जब बृहस्पति मेष राशि (Aries) में और सूर्य मकर राशि (Capricorn) में होता है।
- हरिद्वार: जब बृहस्पति कुंभ राशि (Aquarius) में और सूर्य मेष राशि (Aries) में होता है।
- उज्जैन: जब बृहस्पति सिंह राशि (Leo) में और सूर्य मेष राशि (Aries) में होता है।
- नासिक: जब बृहस्पति सिंह राशि (Leo) में और सूर्य कर्क राशि (Cancer) में होता है।
3. मौनी अमावस्या और ग्रहण का महत्व
- मौनी अमावस्या (अमावस्या का दिन) कुंभ मेले के दौरान सबसे बड़ा स्नान पर्व होता है।
- इस दिन सूर्य और चंद्रमा एक विशेष ज्योतिषीय स्थिति में होते हैं, जो इसे स्नान के लिए अत्यंत पवित्र बनाता है।
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अमृत (अमरत्व का अमृत) कुंभ मेले के दौरान इन खगोलीय स्थितियों में अधिक प्रभावी होता है।
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शास्त्रों में वर्णित कुंभ मेला
1. पुराणों में उल्लेख
- कुंभ मेले का वर्णन मुख्य रूप से स्कंद पुराण, पद्म पुराण, और महाभारत में मिलता है।
- इन शास्त्रों में समुद्र मंथन की कथा के माध्यम से बताया गया है कि कुंभ मेला अमृत से जुड़ा हुआ है।
2. समुद्र मंथन की कथा
- देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया।
- अमृत को लेकर 12 दिन तक देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ।
- इन 12 दिनों को पृथ्वी पर 12 वर्षों के बराबर माना गया।
- अमृत की बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में गिरीं, और इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।
3. बृहस्पति ग्रह का महत्व
- हजारों वर्षों से हम बृहस्पति चक्र के आधार पर हर 12 साल में प्रयाग में महाकुंभ मनाते हैं। हम इसे गुरु के रूप में पूजते हैं।
- हिंदू धर्म में बृहस्पति (गुरु ग्रह) को धर्म, ज्ञान और मोक्ष का कारक माना गया है।
- बृहस्पति की कुंभ राशि में स्थिति कुंभ मेले को अत्यंत शुभ बनाती है।
महाकुंभ मेले की तैयारियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए, आप निम्नलिखित वीडियो देख सकते हैं:
कुंभ मेले के दौरान ग्रहण का महत्व
1. सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण
- कुंभ मेले के दौरान अगर ग्रहण (सूर्य या चंद्र) पड़ता है, तो यह और भी अधिक पवित्र माना जाता है।
- शास्त्रों के अनुसार, ग्रहण के समय संगम या पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. ग्रहण के दौरान स्नान
- ग्रहण के समय किए गए स्नान, दान और तप का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
- ग्रहण के दौरान नदी में स्नान करने से व्यक्ति की कुंडली पर मौजूद दोष कम हो सकते हैं।
शास्त्रों में कुंभ मेला के अन्य संदर्भ
- गंगा का महत्व: गंगा को त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती) में स्नान का विशेष महत्व है।
- दान का महत्व: कुंभ मेले के दौरान गरीबों और जरूरतमंदों को दान करना अत्यधिक पुण्यदायी माना गया है।
- योग और ध्यान: कुंभ मेले के दौरान योग, ध्यान और साधना का विशेष महत्व है।
निष्कर्ष
कुंभ मेला खगोलीय घटनाओं और शास्त्रों में वर्णित मान्यताओं का संगम है। यह न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और ज्योतिषीय धरोहर का एक अद्भुत उदाहरण है। कुंभ मेले में सूर्यमंडल का प्रभाव धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। सूर्य की ऊर्जा को आत्मसात करने और पवित्र नदी में स्नान करने का यह संयोजन व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है, बल्कि मानसिक और शारीरिक शुद्धि का भी माध्यम बनता है।
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