Sambhal Jama masjid :- भारतीय संस्कृती समर्थक जान लो ये बात, पृथ्वीराज चौहान का साम्राज्य लौट आया।

पृथ्वीराज चौहान का शासनकाल

पृथ्वीराज चौहान (1178-1192 ईस्वी) एक महान हिन्दू राजा थे, जिन्होंने वर्तमान उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया। वे संभल (शंम्भल) और दिल्ली के राजा थे। उनका राज्य उत्तर भारत के राजपूत राज्यों में प्रमुख था।

 

उन्होंने तराइन के युद्ध (1191 ईस्वी) में मोहम्मद गौरी को हराया था।

हालांकि, तराइन का दूसरा युद्ध (1192 ईस्वी) में मोहम्मद गौरी ने उन्हें पराजित किया, और यह घटना भारतीय इतिहास का एक बड़ा मोड़ थी।

मुस्लिम आक्रमण और सांस्कृतिक बदलाव

पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद, मोहम्मद गौरी ने भारत में शासन किया । इसके बाद, दिल्ली सल्तनत और अन्य मुस्लिम शासकों के दौर में कई मंदिरों को तोड़ा गया और उनकी जगह मस्जिदें बनाई गईं।

सांस्कृतिक धरोहर का क्षरण: कई ऐतिहासिक दस्तावेज और पुरातात्विक प्रमाण यह बताते हैं कि मंदिरों को तोड़कर उनके स्थान पर मस्जिदें बनाई गईं।

संभल, उत्तर प्रदेश में हाल ही में की गई खुदाई के दौरान महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष मिले हैं ।

खुदाई में प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं, जिनमें स्तंभ, मूर्तियां , शिलालेख और कई जगहों पे कमल कें फ़ुल, त्रिशुल हिंदू प्रतिमा शामिल हैं। ये अवशेष संकेत देते हैं कि यह स्थल जिनपे आज के समय बहोत जगहों पे मस्जिदें उभारी गई हैं । बताया जाता हैं की ये संभल का क्षेत्र  पृथ्वीराज चौहान के समय राजधानी हुआ करती थी। उस समय यहाँ अनेक मंदिरों का निर्माण किया गया था ।

लौट

लौट आया पृथ्वीराज साम्राज्य

हाल ही संभल में खुदाई के दौरान एक प्राचीन बावड़ी का भी पता चला है, जो उस समय (पृथ्वीराज चौहान) की जल प्रबंधन प्रणाली और वास्तुकला की उन्नत तकनीकों को दर्शाता है।

काशी और मथुरा: इन शहरों में भी ऐसे कई स्थल(ज्ञानवापी जैसे) जिन पर विवादित दावा है कि मस्जिदें मंदिरों को तोड़कर बनाई गईं।

संभल से लेकर अजमेर तक की कडी में ऐसे बहोत सारे जगहोंपे मन्दिर और हिंदू प्रतिक होने कें दावे किये जा रहें है । जैसे की,कुतुब मीनार जहां हिंदू वास्तुशिल्प को तोड़कर बनाया गया। इस आक्रमणकारियों ने यहां के संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करने का पूरा प्रयास किया था।

शिवाय मुगल आक्रमनकारी को छोड़ कर बाकी किसी भी आक्रमनकारी ने यहां मंदिर तोड़ कर उसपर खुद के धर्म के प्रतीक नहीं उभारे। बाकी के अक्रमांकरियोन दुसरी जगहोनपे मंदिर की जगह छोड़ दूसरे स्थान पर उनके चर्च, शिल्प का निर्माण किया, शिवाय मुगलोंके।

संबल से लेकर अजमेर तक की कड़ी
यह दावा किया जाता है कि संबल, मथुरा, काशी, दिल्ली, अजमेर आदि क्षेत्रों में ऐसे कई स्थान हैं जहां पुराने मंदिरों के अवशेष मस्जिदों के नीचे मौजूद हैं।

  • इन स्थलों में कुछ पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं, जैसे कि मंदिरों के स्तंभ, मूर्तियां और शिलालेख, जो यह दर्शाते हैं कि पहले वहां मंदिर थे।
  • सांस्कृतिक महत्व: यह स्थान भारतीय इतिहास और संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण हैं और आज भी इनकी चर्चा इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के बीच होती रहती है।

ये खोजें क्षेत्र के इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। पुरातत्वविद् और इतिहासकार इन अवशेषों का अध्ययन कर रहे हैं, ताकि उनके कालखंड और महत्व का निर्धारण किया जा सके। भविष्य में इन स्थलों को संरक्षित करने और पर्यटन के लिए विकसित करने की योजनाएं भी बनाई जा रही हैं।

इन खोजों के माध्यम से संभल का समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर उजागर हो रही है, जो भारतीय इतिहास में इस क्षेत्र के महत्व को रेखांकित करती है।

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