अपनीबात.com

Shrikrushna Arjun Bhagwad Geeta samvad इसे सुन अर्जुन ने डाले हत्यार उठा लिए । तो आप भी ये पढ़ते समय खुद को अर्जुन समझ लो, आपके सारे समस्या का समाधान यही है।

Shrikrushna Arjun Bhagwad Geeta samvad इसे सुन अर्जुन ने डाले हत्यार उठा लिए । तो आप भी ये पढ़ते समय खुद को अर्जुन समझ लो, आपके सारे समस्या का समाधान यही है।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता सुनाने का मुख्य उद्देश्य अर्जुन के भीतर उठ रहे संदेह, मोह और कर्तव्य के भ्रम को दूर करना था। यह महाभारत के युद्ध के समय हुआ, जब अर्जुन कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने ही संबंधियों, और गुरुजनों  के खिलाफ युद्ध करने को लेकर दुविधा और मानसिक अशांति में थे। उसने हथियार डाल दिए और कहा कि वह लड़ने में असमर्थ है।

अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया क्योंकि वह अपने परिवार और गुरुजनों के खिलाफ शस्त्र उठाने को अधर्म समझ रहा था। वह अपने कर्तव्य (धर्म) को लेकर भ्रमित हो गया और हथियार डालकर युद्ध से पीछे हटने की इच्छा व्यक्त की।

इसी समय, श्रीकृष्ण, जो अर्जुन के सारथी थे, ने उसे गीता के माध्यम से जीवन, धर्म, कर्तव्य, आत्मा और मोक्ष के गूढ़ सिद्धांत समझाए। उन्होंने अर्जुन को समझाया और कुछ दोस्त के लिए दिव्य दृष्टि प्रदान की :

ये पढ़ते समय आप खुद को अर्जुन समझ लो, आपके सारे समस्या का समाधान यही है।

पार्थ  आत्मा अमर है – शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा न कभी मरती है, न पैदा होती है।

“न जायते म्रियते वा कदाचित्।” (गीता 2.20)

  • आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है। इसे न कोई काट सकता है, न जला सकता है, न भिगो सकता है, और न सुखा सकता है।
  • “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।” (गीता 2.23)

पार्थ कर्तव्य पालन करो– अपने कर्तव्य का पालन करना ही धर्म है। अर्जुन एक क्षत्रिय था, और उसका धर्म था न्याय और धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना।

पार्थ मोह और अज्ञान का नाश करो:

सखा फल की चिंता ना कर – कर्म करना मनुष्य का अधिकार है, लेकिन उसके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह संदेश आधुनिक जीवन में भी बेहद प्रासंगिक है।

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (गीता 2.47)

साम्यभाव – सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय को समान समझकर निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए।

भक्ति, ज्ञान और कर्म योग – उन्होंने अर्जुन को भक्ति योग, ज्ञान योग और कर्म योग के माध्यम से आध्यात्मिक जीवन जीने की राह दिखाई।

गीता के 18 अध्याय (अध्यात्मिक मार्गदर्शन के तीन मुख्य भाग):

गीता को 18 अध्यायों में विभाजित किया गया है, और हर अध्याय एक अलग योग या मार्गदर्शन का वर्णन करता है। इसे तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है:

1. कर्म योग (1 से 6 अध्याय):

2. भक्ति योग (7 से 12 अध्याय):

3. ज्ञान योग (13 से 18 अध्याय):

श्रीकृष्ण का उद्देश्य: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह समझाने के लिए गीता का उपदेश दिया कि:

 

गीता का वर्तमान संदर्भ:

गीता को “जीवन का मार्गदर्शन करने वाली पुस्तक” कहा गया है। इसके उपदेश न केवल अर्जुन के लिए थे, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के लिए है, जो जीवन में दुविधा, मोह, और अज्ञान के अंधकार में फंसा हुआ है।

गीता का उपदेश अर्जुन को उसकी दुविधा से बाहर निकालने के लिए दिया गया, ताकि वह अपने धर्म और कर्तव्य का सही अर्थ समझ सके और युद्ध में अपनी भूमिका निभा सके। यह उपदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं था, बल्कि हर मानव के लिए जीवन के गूढ़ सिद्धांतों को सिखाने वाला है।

Exit mobile version