Shrikrushna Arjun Bhagwad Geeta samvad इसे सुन अर्जुन ने डाले हत्यार उठा लिए । तो आप भी ये पढ़ते समय खुद को अर्जुन समझ लो, आपके सारे समस्या का समाधान यही है।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता सुनाने का मुख्य उद्देश्य अर्जुन के भीतर उठ रहे संदेह, मोह और कर्तव्य के भ्रम को दूर करना था। यह महाभारत के युद्ध के समय हुआ, जब अर्जुन कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने ही संबंधियों, और गुरुजनों के खिलाफ युद्ध करने को लेकर दुविधा और मानसिक अशांति में थे। उसने हथियार डाल दिए और कहा कि वह लड़ने में असमर्थ है।
अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया क्योंकि वह अपने परिवार और गुरुजनों के खिलाफ शस्त्र उठाने को अधर्म समझ रहा था। वह अपने कर्तव्य (धर्म) को लेकर भ्रमित हो गया और हथियार डालकर युद्ध से पीछे हटने की इच्छा व्यक्त की।
इसी समय, श्रीकृष्ण, जो अर्जुन के सारथी थे, ने उसे गीता के माध्यम से जीवन, धर्म, कर्तव्य, आत्मा और मोक्ष के गूढ़ सिद्धांत समझाए। उन्होंने अर्जुन को समझाया और कुछ दोस्त के लिए दिव्य दृष्टि प्रदान की :
ये पढ़ते समय आप खुद को अर्जुन समझ लो, आपके सारे समस्या का समाधान यही है।
पार्थ आत्मा अमर है – शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा न कभी मरती है, न पैदा होती है।
“न जायते म्रियते वा कदाचित्।” (गीता 2.20)
- आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है। इसे न कोई काट सकता है, न जला सकता है, न भिगो सकता है, और न सुखा सकता है।
- “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।” (गीता 2.23)
पार्थ कर्तव्य पालन करो– अपने कर्तव्य का पालन करना ही धर्म है। अर्जुन एक क्षत्रिय था, और उसका धर्म था न्याय और धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना।
पार्थ मोह और अज्ञान का नाश करो:
- मोह (असत्य के प्रति लगाव) और अज्ञान को त्यागना चाहिए।
- ज्ञान ही अज्ञान को नष्ट करता है।
सखा फल की चिंता ना कर – कर्म करना मनुष्य का अधिकार है, लेकिन उसके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह संदेश आधुनिक जीवन में भी बेहद प्रासंगिक है।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (गीता 2.47)
साम्यभाव – सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय को समान समझकर निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए।
भक्ति, ज्ञान और कर्म योग – उन्होंने अर्जुन को भक्ति योग, ज्ञान योग और कर्म योग के माध्यम से आध्यात्मिक जीवन जीने की राह दिखाई।
गीता के 18 अध्याय (अध्यात्मिक मार्गदर्शन के तीन मुख्य भाग):
गीता को 18 अध्यायों में विभाजित किया गया है, और हर अध्याय एक अलग योग या मार्गदर्शन का वर्णन करता है। इसे तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है:
1. कर्म योग (1 से 6 अध्याय):
- मनुष्य को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।
- निष्काम कर्म (बिना स्वार्थ के कर्म) पर जोर दिया गया है।
- “योग: कर्मसु कौशलम्” (गीता 2.50) – योग का अर्थ है कर्मों में कुशलता।
2. भक्ति योग (7 से 12 अध्याय):
- भगवान में संपूर्ण समर्पण और भक्ति के माध्यम से मुक्ति का मार्ग।
- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि सभी जीव भगवान के ही अंश हैं और भक्ति ही सबसे आसान मार्ग है।
- “सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।” (गीता 18.66) – सभी धर्मों को त्याग कर मेरी शरण में आ जाओ।
3. ज्ञान योग (13 से 18 अध्याय):
- आत्मा, प्रकृति (प्रकृति), और परमात्मा (ईश्वर) के ज्ञान को समझने का मार्ग।
- संसार की असारता और आत्मा की शाश्वतता को समझाया गया है।
- “ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः।” (गीता 7.2) – मैं तुम्हें ज्ञान और विज्ञान दोनों बताऊंगा।
श्रीकृष्ण का उद्देश्य: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह समझाने के लिए गीता का उपदेश दिया कि:
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- मानव का धर्म केवल अपना कर्तव्य करना है।
- आत्मा अमर है, और शरीर एक नश्वर वस्त्र के समान है।
- न्याय की रक्षा के लिए अधर्म से लड़ना एक क्षत्रिय का धर्म है।
गीता का वर्तमान संदर्भ:
- मानसिक तनाव में सहायक: गीता के सिद्धांत आज के जीवन में मानसिक तनाव और मोह को दूर करने में सहायक हैं।
- कर्म और सफलता: निष्काम कर्म का सिद्धांत बताता है कि हमें अपनी मेहनत पर ध्यान देना चाहिए, न कि परिणाम की चिंता करनी चाहिए।
- आध्यात्मिक मार्गदर्शन: यह पुस्तक केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और तात्त्विक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
गीता को “जीवन का मार्गदर्शन करने वाली पुस्तक” कहा गया है। इसके उपदेश न केवल अर्जुन के लिए थे, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के लिए है, जो जीवन में दुविधा, मोह, और अज्ञान के अंधकार में फंसा हुआ है।
गीता का उपदेश अर्जुन को उसकी दुविधा से बाहर निकालने के लिए दिया गया, ताकि वह अपने धर्म और कर्तव्य का सही अर्थ समझ सके और युद्ध में अपनी भूमिका निभा सके। यह उपदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं था, बल्कि हर मानव के लिए जीवन के गूढ़ सिद्धांतों को सिखाने वाला है।